नारी पर निबंध

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Bhartiya Nari Essay In Hindi - Nari Par Nibandh

Essay On Women - Essay On Women In Hindi

रुपरेखा : नारी की परिभाषा - नारी के अनेक रूप - नारी के स्वाभाव - अनुरक्त रूप और विरक्त रूप - उपसंहार।

नारी की परिभाषा

मनुष्य जाति का वह वर्ग जो गर्भधारण कर मनुष्य को जन्म देता है उन्हें नारी कहते है। युवती तथा बालिग स्त्रियों की सामूहिक संज्ञा को नारी कहते है। धार्मिक क्षेत्र में साधकों की परिभाषा में प्रकृति और माया, उन्हें नारी कहते है। कई युग से आज तक विकास पथ पर पुरुष का साथ देकर, उनकी यात्रा को सरल बनाकर, उनके अभिशापों को स्वयं झेलकर और अपने वरदानों से जीवन में अक्षय शक्ति भरकर, मानवी ने जिस व्यक्तित्व, चेतना और हृदय का विकास किया है, उसी का पर्याय नारी है।

नारी के अनेक रूप

मन का विदारण करने के कारण नारी को दारा कहा जाता हैं। शरीर को आहत कर देने के कारण नारी एक बनिता है । इसके अंगों के समान किसी अन्य के श्रेष्ठ अंग नहीं होते, इसीलिए नारी एक अंगना है। प्रिय के दैव को छीन लेती है अथवा दया भाव रखती है इसलिए नारी एक दयिता है। तीन प्रकार से शत्रु होने के कारण नारी तीमयी कहलाती है। उपकार और सुख पहुँचाने के कारण नारी धन्य कहलाती है। पति ही मानो पुत्र रूप में उससे जन्म लेता है इस कारण नारी जाया कहलाती है। नारी पुरुष की विरासत है, जैसे वृक्ष के सहारे कोई बेल बढ़ रही हो। नारी एक छाया है, अनुगामिनी है, सहयोग है। उनका अपना स्वतंत्र अस्तित्व जैसे है ही नहीं। वह पुरुष की सहकलाकार, साथी ही नहीं, अनुचरी भी है। जन्मदात्री होने के कारण नारी को जननी भी कहते है। जीवन भर पति का साथ निभाने के कारण नारी को सहयात्रिणी कहते है। धर्म कार्यों में उनका साथ अनिवार्य होने के कारण नारी एक सहधर्मिणी है। गृह की व्यवस्थापिका होने के कारण नारी को गृह लक्ष्मी कहते है । तन मन से अपने पति की हर मुकाम में साथ देना नारी अपना धर्म समझती है।

नारी के स्वाभाव

नारी स्वभाव से चंचल, चतुर, स्वाभिमानी होती है । नारी का लज्जा उनका आभूषण है तथा रोना उनका बल है। नारी के भोलापन और निश्छलता के कारण वह सहज मुग्ध हो जाते है, प्रेम के आधीन हो जाती है। वह एक आँख से हँसतो है तो दूसरी आँख से रोती है। नारी की करुणा अन्तर्जगत्‌ का उच्चतम विकास है, जिसके बल पर सदाचार उहरे हुए हैं। इसलिए नारी नैतिक आदर्शों की संरक्षिका है । उनके जीवन का संतोष ही स्वर्णश्री का प्रतीक है। उनके वक्ष में पयस्विनी धार है और उनकी हँसी में जीवन निर्झर का संगीत है। दया, धैर्य और सहनशीलता नारी का स्वाभाविक धर्म है। उनका चित्त फूल जैसा कोमल है तो हृदय प्रेम जैसा रंगमंच है। उसका प्रेम जल पर लिखा लेख है और विश्वास रेत पर बने पदचिन्ह है |

अनुरक्त रूप और विरक्त रूप

अनुरक्त रूप लेकर नारी अमृत तुल्य हो जाती है औरविरक्त रूप लेने पर विष बन जाती है। वह उत्साहित भी जल्दी होती है तो उतने ही अधिक परिमाण में निराशाबादिनी भी हो जाती है। नारी एक शरत्कालीन अंमृतमयी ज्योत्स्ना है, जो विषाद की घन-घटाओं को दूर करती है। नर ह्रदय के पुण्य स्पर्श मात्र से दरिद्र की कुटिया शांति निकेतन बन जाती है। नारी के हाथ स्वार्थमयी पृथ्वी की कलुषकालिमा पोंछ देते हैं। प्रेम के दीप जलाकर कर्तव्य की तपस्या में नारी संसार पथ में गरिमा का वितरण करती है।

उपसंहार

नारी मानव की प्रिय है और सम्पूर्ण जग॒त्‌ की माता है। नारी प्रेरणा की अनुभूति को मधुर मातृत्व में डालकर अपने प्राण न्यौछावर करके जाति को जीवित रखती है। नारी ही मानवता की धुरी है और मानवीय मूल्यों की संवाहक है। मानवता की गरिमा और लावण्य भी नारी का रूप है। धरती का पुण्य उनकी सुषमा में व्यक्त होती है। सृष्टि का पुण्य नारी में ही विराजमान है। इसीलिए नारी का हमेसा आदर करना चाहिए और उनका सहे दिल से सम्मान करना चाहिए। नारी का पृथ्वी पर होना, पृथ्वी का गौरव है।

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